संलग्न चित्र दिखता है की किस देश में वायु प्रदूषण से कितनी मृत्यु हुई. https :// commons. wikimedia . org/ wiki/ File:Deaths_from_air_pollution.png
🚩 हमारे देश में प्रदूषण बढ़ने के मुख्य कारण निम्न-लिखित हैं-
- अरब देशों का सबसे घटिया तेल भारत जैसे देशों के लिए सुरक्षित रहता है | हम जान बूझ कर अरब देशों का घटिया तेल खरीदते हैं क्योंकि वो सस्ता भी नहीं होता है और उसमें ज्यादा सल्फर होता है ।
http://www.thehindubusinessline.com/economy/why-india-prefers-brent-to-cheaper-us-crude-oil-wti/article2359323.ece
अधिकतर यूरोपियन देशों में पर्यावरण के नियम सख़्त है इसलिये वो स्वीट क्रूड ( कम सल्फ़र वाला ) ही ख़रीदते है मगर हमारे यहाँ घटिया और महंगा ख़रीदने के चक्कर में पर्यावरण की बलि चढ़ रही है जिसका दुष्प्रभाव धीरे धीरे सामने आएगा । - भारत आने के बाद भी रिफाइनरी में ठीक से रिफाइन नहीं करते (कागज़ पर पूरा रिफाइंड दिखाया जाता है लेकिन भ्रष्टाचार है) |
- गाड़ियों के ठीक से रख-रखाव पर लोग ध्यान नहीं देते — कितने ड्राईवर हैं जिनको प्रदूषण घटाने के तरीकों की जानकारी भी है, और यदि है तो परवाह है ?
- सरकारी कर्मचारी उनके प्रदूषण की जाँच किये बिना परमिट देते हैं, जुरमाना नहीं लगाते | कभी मेरे किसी गाड़ी के प्रदूषण की जाँच नहीं की गयी, जाँच कराने पर तो बिना जाँच के कागजात थमा देते हैं ! इतने वर्षों में कभी मेरे ड्राइवरी लाइसेंस की जाँच नहीं की गयी, यद्यपि मेरे अपने कागजात अपडेट हैं | कामधाम नहीं करना है तो DTO कार्यालयों को बन्द ही करा देते !!
- दिल्ली में अदालत दस वर्ष से अधिक पुरानी गाड़ियों पर सीधे रोक लगा देती है, लेकिन प्रदूषण के सही जाँच की आज्ञा नहीं देती |
- मूल कारण यह है कि भारत में इन्सान के जान की कीमत धेले के बराबर है, हंगामा होता है तभी सुनवाई होती है, और लोग भी हंगामा नहीं करते — अध्यात्म का देश है न ! शरीर पर ध्यान देकर क्या होगा ??
- भारत में सामान्यतः हर किस्म के कारखानों में प्रदूषण घटाने की जाँच नहीं की जाती | हमारी नयी गाड़ियाँ भी अन्तर्राष्ट्रीय मानकों से अधिक गन्दी गैस छोडती हैं |
- गाड़ियों द्वारा प्रदूषण से अधिक खतरनाक है हवा का प्रदूषण जिस कारण जहरीली वर्षा होती है और भूगर्भजल भी प्रदूषित हो रहा है | मेरे शहर दरभंगा में कोई महत्वपूर्ण उद्योग नहीं है और यहाँ से ठीक उत्तर माउंट एवरेस्ट है जहां तक रास्ते में कोई नाम लेने लायक उद्योग नहीं है, किन्तु अब बिना फ़िल्टर के पानी पीने लायक नहीं रहा, हैंडपंप में फ़िल्टर रहने पर भी जहरीला पानी निकलता है और मिठास तो गायब है | कीटनाशक आदि भी कारण हैं, किन्तु उतना नहीं जितना चीन का जहर है | अमरीका और यूरोप में जब उद्योग के प्रमुख केन्द्र थे तब भारत उनसे दूर रहने के कारण अपेक्षाकृत सुरक्षित था, किन्तु अब संसार के 45% उद्योग चीन में हैं जहाँ की सरकार पिशाचों की है, उसे अपने नागरिकों की भी चिन्ता नहीं है तो वहां से भारत आने वाली जहरीली हवा की चिन्ता क्यों करे ?
- भारत की नौकरशाही वातानुकूलित शीशमहलों में रहती है, उसे प्रदूषण का ख़तरा है ही नहीं, अतः कोई चिन्ता नहीं है | नेताओं को जानकारी नहीं है | मीडिया बड़े सेठों की है जिनको चीन से केवल 3% की सस्ती सूद पर कर्ज मिलता है, मुँह नहीं खोलेंगे | भारत में रोगों के बढ़ने का मुख्य कारण भारत की गाड़ियां या पटाखे नहीं बल्कि चीन से आने वाली जहरीली हवा है, इसका मैं भुक्तभोगी हूँ | बचपन में जो स्वाद पानी, फलों और अन्न आदि में मिलता था उसकी अब कल्पना भी नहीं की जा सकती | सबकुछ विषैला है | शासक वर्ग को अपनी पड़ी है, अपने घरों में कृत्रिम ऑक्सीजन के संयन्त्र और RO के फ़िल्टर लगा लेंगे, बाहर की परवाह नहीं है |
- हमारे “विशेषज्ञ” आपका ध्यान छोटे-मोटे कारणों की ओर दिलाएंगे, दीवाली बन्द करायेंगे, असल कारणों की जानबूझकर चर्चा नहीं करेंगे, क्योंकि प्रदूषण दूर करने में सेठों को खर्चा करना पडेगा तो “विशेषज्ञों” को वेतन और घूस कौन देगा ?
🚩 समाधान:
समाधान के लिए नागरिकों को स्वयं ही अपने अपने शहरों के प्रयोगशालाओं में जाकर हवा-पानी-मिटटी का सैंपल लेकर स्वयं विश्लेषण करके स्वयं ही संचार तंत्र में दिखाए जाने वाले प्रदूषण सम्बंधित खबरों का खंडन करना चाहिए, यदि उन्हें अपने क्षेत्र मे
प्रदूषण सम्बंधित आंकड़े में गलती लगती हो, तो उस सम्बंधित समाचार पत्रों को पत्र लिखें, सम्बंधित मंत्रालय को भी पत्र लिखें, उन्हें दबाव डालें कि अमुक अमुक समाचार तंत्र एवं मीडिया ने झूठ क्यूँ दिखाया?
इस शिकायत को आप सबको सार्वजनिक भी करना चाहिए जिसे अन्य सभी नागरिक बिना लॉग इन के देख सकें. इस प्रणाली को हम पारदर्शी शिकायत प्रणाली बोलते हैं.
जनता की आवाज़- पारदर्शी शिकायत प्रणाली इस समस्या का समाधान है, जिसमे किसी भी सबूत को दबा दिया जाना संभव न हो पायेगा. देश का कोई भी नागरिक बिना लॉग इन के देख सकेगा.
हमने इस प्रमाणिक इमानदार सिस्टम का एक छोटा सा डेमो तैयार किया है, जिसे यहाँ देखें – smstoneta.com/hindi
जनता की आवाज को दबाया जाना असंभव बनाने के लिए पारदर्शी शिकायत प्रणाली होना अनिवार्य है,जिससे सबूत इत्यादि सार्वजनिक उपलब्ध करवाया जा सके. जनता की आवाज – पारदर्शी शिकायत प्रणाली’ — टीसीपी के लिए प्रस्तावित कानूनी ड्राफ्ट : fb.com/notes/1475751599184491
झूठ प्रकाशित करने एवं दिखाने के एवज में समबन्धित मीडिया चैनल को क्या दंड दिया जाए, इसका निर्णय जनता के हाथ में देना चाहिए, क्योंकि ये संस्थान जनता से सीधे सम्बंधित है, सरकार से इनको मात्र धन एवं वोट के लिए अमुक अमुक व्यक्ति को प्रोमोट करने से काम होता है.
इस तरह से न्याय को ज्यूरी प्रणाली बोलते हैं. अधिक समझने के लिए ड्राफ्ट यहाँ देखें- fb.com/notes/1475753109184340
याद रखिये कि इस तरह की सभी मांगों के लिए सौ-पांच सौ की संख्या में एकत्रित होकर ही आदेश भेजिए, इसी तरह से अन्य कानूनी-प्रक्रिया के ड्राफ्ट की डिमांड रखें. यकीन रखे, सरकारों को झुकना ही होगा.
>🚩राईट टू रिकॉल, ज्यूरी प्रणाली, वेल्थ टैक्स जैसेे क़ानून आने चाहिए जिसके लिए, जनता को ही अपना अधिकार उन भ्रष्ट लोगों से छीनना होगा, और उन पर यह दबाव बनाना होगा कि इनके ड्राफ्ट को गजेट में प्रकाशित कर तत्काल प्रभाव से क़ानून का रूप दें, अन्यथा आप उन्हें वोट नहीं देंगे.
अन्य कानूनी ड्राफ्ट की जानकारी के लिए देखें fb.com/notes/1479571808802470
औपचारिकताएं सज्जनों के लिए निभानी चाहिए. दुष्टों के लिए नहीं.
🚩 लोगों का मुंह ज़बरदस्ती बंद करना एक नदी को रोकने से भी ज्यादा खराब है. नागरिक-ओपिनियन को सार्वजनिक होने से रोक सकना प्राचीन समय से ही कितना कठिन है, इस सम्बन्ध में एक कहानी प्रस्तुत है.
चौथी शताब्दी ई.पू. चीनी परिचर्चा में ड्यूक जहो ने ज्होऊ के राजा ली से कहा था कि “लोगों का मुंह ज़बरदस्ती बंद करना एक नदी को रोकने से भी ज्यादा खराब है”. “उसे सच बताओ, चाहे वो नाराज़ ही क्यूँ न हो”, आप समझ सकते हैं कि चौथी शताब्दी में भी लोगो मे यह समझ थी कि सेंसर शिप यानी जनता को सच बताने से महरूम रखना एक बड़ा अपराध हैं आज के मीडिया का मतलब क्या रह गया हैं ? क्या यह अब लोकतंत्र का चोकीदार, बेजुबानों की आवाज, चौथा स्तम्भ, अभिव्यक्ति का सशक्त माध्यम, निडर निष्पक्ष ताकत रह गया हैं ?
ऐसे वक्त में जब ये सारे शब्द अब अपनी चमक खोते जा रहे हैं ऑनलाइन मीडिया जर्नलिज्म अपने नए तेवर ओर तल्खी लेकर के सामने आया है, जो लोग सोशल मीडिया पर ब्लॉगिंग में या RTI में लगातार एक्टिव रहते आये हैं अब भ्रष्टाचारी सरकार को खटकने लगे हैं ओर सत्तासीन शक्तियों के द्वारा उसे भी डराने ओर धमकाने के प्रयास किये जा रहे हैं और यह स्थिति सिर्फ भारत मे ही नही पायी जा रही हैं अपितु यह स्थिति अब वैश्विक स्वरूप अख्तियार कर चुकी हैं
इस का समाधान पारदर्शी शिकायत प्रणाली है.
जय हिन्द. वन्दे मातरम्